पापा के दोस्त के साथ मस्ती- 3 बाय गरिमा सेक्सी।

पापा के दोस्त के साथ मस्ती- 3 बाय गरिमा सेक्सी।

गरम चूत का इलाज मेरे भाई ने मेरी चूत चाट कर सड़क किनारे वाली झाड़ियों में किया! पापा के दोस्त की गोद में बैठ कर उनका लंड मेरी गांड में चुभने से मैं गर्म हो गयी थी.

 

मेरी पिछली कहानी में आपने पढ़ा कि सोनू घर आया तो वह मेरी सहेली को चोदना चाहता था. घर में यह संभव नहीं था. तो मैंने पापा के एक दोस्त के घर जाने की योजना बनाई.

वहां मैंने अपने भाई को सहेली की चुदाई के लिए दूसरे कमरे में भेज दिया और मैं अंकल को गर्म करने लगी.

अंकल मेरे साथ मस्ती करते करते पजामे में ही झड़ गए.

 

तभी मेरा भाई मेरी सहेली की चुदाई करके बाहर निकला.

 

मैं मुस्कुराती हुई बोली- उन्हें छोड़ो … यह बताओ काम हो गया कि कुछ कसर बाकी रह गयी है? प्लान सही था कि नहीं मेरा?

ज्योति मुस्कुराती हुई बोली- प्लान तो लाजवाब था।

 

फिर हम तीनों हंस दिये।

 

तभी कुछ देर बाद अंकल भी लोअर चेंज कर आ गये।

चूंकि उन्होंने दोबारा उसी रंग की लोअर पहनी थी तो ज्योति और सोनू ने ध्यान नहीं दिया कि वे दूसरी लोअर पहने हैं।

 

फिर हम सबने कुछ देर बातें की और फिर घर के लिए वापस चल दिये।

 

अब आगे गरम चूत का इलाज:

 

सच कहूँ तो इतनी देर में मेरी चूत भी एकदम गीली हो चुकी थी और उसकी खुजली बर्दाश्त नहीं हो रही थी।

 

अंकल के घर से निकलते-निकलते करीब साढ़े आठ बज चुके थे और अंधेरा हो चुका था।

 

घर लौटते वक्त रास्ते में हम बातें करते आ रहे थे।

 

मैंने कहा- तुम दोनों अंदर मजे कर रहे थे और तुम दोनों के बारे में सोचकर मेरी चूत में खुजली मच रही है उसी समय से!

 

ज्योति हंसते हुए बोली- अरे तो आ जाती ना तू भी!

मैं बोली- अरे अंकल थे … नहीं तो मैं आ ही जाती!

 

सोनू हंसते हुए बोला- तो क्या हुआ … उन्हें भी लेती आती, साथ में मजे कर लेते चारों!

हम तीनों हंस दिये।

 

अब मैं क्या बताती कि अंकल ने ही आग लगायी है।

 

सोनू मुस्कुराते हुए बोला- मेरा तो दो बार पानी निकल चुका है तो दोबारा खड़ा होने में टाइम लगेगा नहीं तो अभी खुजली मिटा देता। रात में मिटाता हूं खुजली!

 

ज्योति मुस्कुराते हुए बोली- अरे तो क्या हुआ जीभ का कमाल दिखा ना! वैसे भी यहाँ सुनसान और अंधेरा है।

 

चूंकि कॉलोनी में बाहर का कोई आना जाना नहीं था तो सुनसान सड़क पर हम लौट रहे थे।

दोनों तरफ पेड़ और बड़ी झाड़ियाँ थीं।

स्ट्रीट लाइट भी सब खराब पड़ी थीं।

जिसकी वजह से कोई देख नहीं सकता था हमें!

 

सोनू ने आगे की तरफ एक जगह की ओर इशारा करते हुए कहा- वहाँ एकदम अंधेरा है वहीं चलते हैं। वहीं अपने जीभ का कमाल दिखाता हूँ।

हम तीनों हंस दिये और फिर उस जगह पर आकर सड़क से हटकर पेड़ों के पीछे झाड़ियों में आ गये।

 

मेरे ऊपर वासना का ऐसा भूत सवार था कि मैं रात का इंतज़ार नहीं करना चाह रही थी, मुझे मेरी गरम चूत का इलाज तुरंत चाहिए था।

 

मैंने एक पेड़ पर पीठ टिका दी और सोनू मेरे सामने वहीं घुटने के बल बैठ गया।

अपनी पैण्टी निकाल कर मैंने ज्योति को पकड़ा दी और स्कर्ट को पूरा उठाकर कमर को आगे कर चूत को सोनू के सामने कर मुस्कुराती हुई बोली- जल्दी से अपनी जीभ का कमाल दिखा दे भाई!

 

हालांकि अंधेरे में हम एक-दूसरे को भी मुश्किल से ही देख पा रहे थे।

 

सोनू ने बिना कुछ बोले मेरी दोनों हाथों से मेरी जांघों को फैलाया और अपना मुंह सीधा मेरी चूत पर रख दिया और जीभ निकालकर तेजी से चूत चाटने लगा।

 

मैं रात के सन्नाटे में हल्का-हल्का अपनी कमर हिलाते हुए भाई से चूत चटवाने लगी।

मेरी मुंह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकलने लगीं.

 

वहीं ज्योति थोड़ा आगे बढ़कर सड़क पर निगाह गड़ाए थी कि कोई आ तो नहीं रहा है।

 

इधर सोनू तेजी से मेरी चूत चाटे जा रहा था और मैं सोनू के सिर को पकड़े कमर हिलाते हुए तेजी से चूत चटवा रही थी।

 

मैंने अपने होठों को दांतों से भींच रखा था ताकि मुंह से सिसकारी की आवाज तेज न निकले।

उसके बावजूद मेरे मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकल रही थी- आआआ आआह हहह … सोनू … तेज और तेज चाट भाई … आह!

 

मेरी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि चूत चाटते हुए बीच-बीच में सोनू आराम से अपनी जीभ मेरी चूत के अंदर डालकर घुमा रहा था।

मैं इतनी चुदासी हो चुकी थी कि मेरे लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था।

 

अचानक मैंने तेजी सोनू के सिर को कसकर पकड़ लिया और अपनी चूत से एकदम सटा दिया.

मेरे मुंह से तेज सिसकारी निकली- आआआ आआ आआ आआहह हहह … बस ससस!

और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया।

 

मैं करीब 15-20 सेकेण्ड तक उसी तरह मुंह को चूत में दबाए खड़ी रही।

सोनू ने चूत का सारा पानी चाट लिया उसके बाद उसने चूत से मुंह को हटाया और खड़ा हो गया।

 

मैं भी सांस को जल्दी से काबू में करने की कोशिश करने लगी।

ज्योति ने मुझे पैंटी दी जिसे मैंने पहन लिया फिर हम तीनों घर वापस आ गए।

 

खैर इसी तरह डेढ़ दो महीने बीत गये।

लेकिन उस दिन के बाद हमें और अंकल को दोबारा वैसा मौका नहीं मिला कुछ करने का और न ही हम उससे आगे बढ़ पाए।

हालांकि इस बीच मैंने महसूस किया कि अंकल के दिमाग में कुछ और चल रहा है।

 

पहले तो मुझे लगा कि वह शायद उस दिन जो हुआ उससे शर्मिन्दा होंगे।

लेकिन बाद में जब पता चला कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है तो मैं दंग रह गयी।

 

दरअसल एक दिन हर बार की तरह अंकल संडे की शाम को घर आये।

उस दिन वह साथ में मिठाई का डिब्बा भी लेकर आये थे और बहुत खुश थे।

 

पापा ने पूछा- क्या हुआ, कोई खुशखबरी है क्या?

अंकल बोले- हाँ भाई, आज बेटे का रिजल्ट आ गया, उसकी रेलवे में जॉब लग गयी है।

 

तब तक मम्मी भी आ गयीं, अंकल ने उन्हें मिठाई का डिब्बा दे दिया।

मम्मी-पापा ने उन्हें बधाई दी।

 

मैंने भी अंकल को नमस्ते किया और बधाई देकर किचन में आ गयी और मम्मी की मदद करने लगी।

 

अंकल संडे को अक्सर खाना खाकर ही घर जाते थे तो मैं और मम्मी किचन में खाने की तैयारी में लग गये थे।

उधर पापा अंकल के साथ बात कर रहे थे।

 

तभी पापा ने मम्मी को आवाज देकर बुलाया।

वैसे पापा कभी मम्मी को बुलाते नहीं थे जब तक कोई खास बात न हो.

तो मम्मी पास चली गयीं।

 

वे लोग धीमे-धीमे कुछ बातें कर रहे थे लेकिन मुझे कुछ क्लीयर नहीं हो रहा था कि आखिर क्या बात हो रही है।

 

करीब 15 मिनट के बात मम्मी किचन में आयीं तो बहुत खुश लग रहीं थीं।

मैंने पूछा- क्या हुआ, कुछ खास बात है क्या?

मम्मी मुस्कुराती हुई बोलीं- है तो खास ही … बाद में बताती हूँ, पहले जल्दी से खाना बना लें।

 

मैं समझ नहीं पायी और फिर मम्मी की मदद करने लगी।

 

खैर … खाना वगैरह खाकर जब अंकल चले गये तो मम्मी ने तुरंत मामा को फोन लगाने लगीं।

तब जाकर मुझे पता चला कि आखिर क्या मामला है।

 

मम्मी बेहद खुश होकर नानी और मामा से बात करते हुए कह रही थीं- गरिमा के लिए रिश्ता आया है। लड़का सरकारी नौकरी में है रेलवे में … और रिश्ता खुद लड़के वालों की तरफ से आया है। लड़के के पापा भी रेलवे में अधिकारी हैं।

 

पापा ने मेरी ओर देखा तो मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया।

चूंकि पापा-मम्मी साथ में थे तो पापा ने ज्यादा कुछ नहीं कहा।

 

जब ये सब बातें होने लगीं तो मैं अपना खाना लेकर अपने कमरे में चली आयी।

 

अब मैं समझ गयी कि अंकल के मन में इतने दिन से क्या चल रहा था।

मम्मी-पापा तो समझ रहे थे कि अंकल तो पापा के साथ दोस्ती निभा रहे हैं लेकिन असलियत तो मुझे पता थी कि वह तो अपने चक्कर में मेरी शादी अपने लड़के से कर रहे हैं।

लेकिन यह बात मैं किसी से कह भी नहीं सकती थी।

 

क्योंकि वैसे भी मम्मी, मामा, नानी और पापा की बातचीत से लग रहा था कि वे सभी इस रिश्ते के लिए तैयार हैं।

मामला सरकारी नौकरी का था इसलिए सभी इस रिश्ते के लिए तैयार थे।

 

हालांकि मुझे भी कोई दिक्कत नहीं थी … लेकिन शादी इतनी जल्दी तय हो जाएगी मुझे अंदाजा नहीं था।

उस समय मेरी उम्र अभी 21 साल की ही थी और कॉलेज का आखिरी साल था।

 

हालांकि एक बात सोचकर ही मेरे मन और चूत दोनों में कुलबुली हो गयी थी कि शादी के बाद ससुराल में भी दो लण्ड तो तय हैं।

एक हसबैंड का और दूसरा ससुर का … जो पहले ही मेरी मस्त जवानी के दीवाने हो चुके थे।

 

एक दिन मेरी चुदाई करते समय पापा मुझसे बोले- एक बात बोलूँ बेटा!

मैंने कहा- बोलिए पापा?

पापा बोले- मेरी इच्छा है कि शादी वाले दिन जब तू दुल्हन के कपड़े में सज धज कर तैयार हो तो उस दिन भी मैं तुम्हारे साथ सेक्स करूँ।

 

कुछ दिन बीतने के बाद एक दिन मम्मी मुझसे बोलीं- अगले संडे अंकल के साथ उनका बेटा (जिससे मेरी शादी होनी थी) और उसकी बहन मुझे देखने आ रहे हैं।

यह सुनते ही मेरी धड़कन बढ़ गयी।

 

शनिवार को मामा-मामी भी घर आ गये।

 

खैर … सब कुछ तय हो गया, लड़के और उसकी बहन दोनों को मैं पसंद आ गयी।

 

इंगेजमेंट और शादी की डेट भी फाइनल हो गयी।

 

सबकुछ इतनी तेजी से हो रहा था कि क्या बताऊँ।

 

इसमें सबसे ज्यादा तेजी दिखा रहे थे अंकल यानि मेरे होने वाले ससुर!

 

इस बीच मेरे होने वाले ससुर जी का हमारे घर आना-जाना बंद हो गया.

उसकी वजह ये थी शादी के कुछ दिनों पहले ही उन्होंने जुगाड़ लगाकर अपना ट्रांसफर उसी शहर में करवा लिया जहाँ उनका घर यानि मेरी होने वाली ससुराल थी।

 

अब उसकी वजह क्या थी यह सब आगे कहानी में आपको पता चलेगा।

 

तो दोस्तो, कैसी लगी

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